The Basic Principles Of Shiv chaisa
The Basic Principles Of Shiv chaisa
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वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
शंकरं, शंप्रदं, सज्जनानंददं, शैल – कन्या – वरं, परमरम्यं ।
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
दिल्ली के प्रसिद्ध हनुमान बालाजी मंदिर
अर्थ: माता मैनावंती की दुलारी अर्थात माता पार्वती जी आपके बांये अंग में हैं, उनकी छवि भी अलग से मन को हर्षित करती है, तात्पर्य है कि आपकी पत्नी के रुप में माता पार्वती भी पूजनीय हैं। आपके हाथों में त्रिशूल आपकी छवि को और भी आकर्षक बनाता है। आपने हमेशा शत्रुओं का नाश किया है।
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
अर्थ: हे अनंत Shiv chaisa एवं नष्ट न होने वाले अविनाशी भगवान भोलेनाथ, सब पर कृपा करने वाले, सबके घट में वास करने वाले शिव शंभू, आपकी जय हो। हे प्रभु काम, क्रोध, मोह, लोभ, अंहकार जैसे तमाम दुष्ट मुझे सताते रहते हैं। इन्होंनें मुझे भ्रम में डाल दिया है, जिससे मुझे शांति नहीं मिल पाती। हे स्वामी, इस विनाशकारी स्थिति से मुझे उभार लो यही उचित अवसर। अर्थात जब मैं इस समय आपकी शरण में हूं, मुझे अपनी भक्ति में लीन कर मुझे मोहमाया से मुक्ति दिलाओ, सांसारिक कष्टों से उभारों। अपने त्रिशुल से इन तमाम दुष्टों का नाश कर दो। हे भोलेनाथ, आकर मुझे इन कष्टों से मुक्ति दिलाओ।
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥